Thursday, September 4, 2014

प्रेम-प्रपंच

प्रेम-प्रपंच

पुष्पा मैत्रेयी जी के एक आलेख में एक वाक्य पढ़कर पहले तो मैं चकित हुई लेकिन ध्यान से दुबारा सोचने पर बहुत ही अर्थपूर्ण लगा यह संदेश- “अब जब मोहब्बत का जलवा है तो कभी किसी समझदार आधुनिक युवती को किसी कंगाल बूढ़े से प्रेम क्यों नहीं होता यदि कहीं ऐसा हुआ हो तो मुझे बताइये। मै उस मोहब्बत को सलाम भेजूंगी ”

यह प्रसंग उन स्त्रियों के लिए आया है जो किसी पुरुष के प्यार में पड़कर उससे शादी करने का निर्णय ले लेती हैं यह जानते हुए भी कि वह पुरुष पहले से शादी-शुदा है। हाल ही में कुछ ‘देर-आयद-दुरुस्त आयद’ टाइप “प्रेम-विवाह’ अखबारों की सुर्खियाँ बने और न्यूज चैनेलों ने भी खूब चटखारे लेकर खबरें दिखायीं। इस प्रेम में पोलिटिकल पॉवर और धन-सम्पत्ति की भूमिका को उभरते देखा गया तो यह भी कहा गया कि प्यार उम्र नहीं देखता। कुछ सुबह के भूले शाम को घर लौटते बताये गये तो कुछ ढलती उम्र वाले राजनेता अपने उत्कृष्ट व्यक्तित्व व विचारों से सेलिब्रिटी महिलाओं को क्लीन बोल्ड करते बखाने गये।

लेकिन पुष्पा जी इस सारी बखान और खबरनवीसी के पीछे जाकर किसी और ही सच्चाई की ओर इशारा करती दिखायी दे रही हैं। उनके मतानुसार यदि कोई पुरुष एक ही साथ कंगाल और बूढ़ा दोनो हो तो कोई समझदार आधुनिक युवती उससे प्यार नहीं करेगी। मतलब यह कि किसी समझदार युवती का प्यार पाने के लिए या तो आपको बांका जवान होना पड़ेगा अथवा मोटे माल का मालिक होना पड़ेगा। अगर किसीके पास यह दोनो काबिलियत हो तो समझिए उसके दोनो हाथ में लड्डू हैं जिसके लिए तमाम आधुनिक युवतियाँ मचलती चली आयेंगी। यदि पुष्पा जी की बात सही है तो मुझे प्रेम के बारे में बड़ी चिन्ता ने घेर लिया है। मैं उस बॉलीवुड अभिनेता की बात नहीं कर रही जिसका अधिकांश रोमांटिक फिल्मों में नाम ही प्रेम रखा गया है।

मै ‘प्रेम’ के बारे में अपने कुछ ऐसे भाव व्यक्त करना चाहूंगी जो पुष्पा जी के महावाक्य से पहले तक मेरे मन में पलते रहे हैं। प्रेम किसी निरे ठूंठे व्यक्ति अथवा वस्तु से नहीं हो सकता। प्रेम एक आकर्षण है, जो किसी वस्तु या व्यक्ति के प्रति केवल उसकी समग्रता में ही नहीं बल्कि उसके कुछ अंश के प्रति भी हो सकता है। यह कह देना कि किसी को किसी कंगाल बूढे व्यक्ति से प्रेम नहीं होता, मुझे मान्य नहीं है। मै इस ख़याल से असहमत हूँ। अगर यहां कंगाल होने का मतलब सिर्फ रूपये-पैसे और धन-दौलत की कमी से है तो भी यह सोचना गलत है।

अगर किसी बूढ़े व्यक्ति के पास धन-दौलत न हो मगर उसके अंदर मन को भली लगने वाली बात करने की कुशलता हो, उत्कृष्ट ज्ञान हो और प्रभावशाली बुद्धिमत्ता हो, वह साहित्य संगीत या दूसरी कलाओं का हस्ताक्षर हो तो भी वह प्रेम और आकर्षण का केन्द्र बिन्दु हो सकता है। ऐसे व्यक्तियों पर स्त्रियां निःसंदेह आकर्षित होती हैं बिना उसकी उम्र या पैसा देखे। यह आकर्षण भी प्रेम का एक रूप है। प्रेम जब किसी अभीष्ठ को पाने के लिए किया जाय तो वह प्रेम की श्रेणी में नहीं बल्कि स्वार्थ की श्रेणी में गिना जाना चाहिए। कहा गया है कि प्रेम अंधा होता है। लेकिन मुझे लगता है कि असली प्रेम गूंगा और बहरा भी होता है। प्रेम एक ऐसी भावना है जिसका सिर्फ एहसास किया जा सकता है। इसीलिए पुष्पा जी ने अपने सधे हुए शब्दों में ‘समझदार और आधुनिक’ होने की शर्त भी जोड़ दी है। ये दोनो गुण ऐसे हैं जो निःस्वार्थ विशुद्ध प्रेम की राह पर जाने से रोकते हैं।

प्रेम में यदि किसी चाहत के लिए शब्द फूटने लगे तो वह प्रेम नहीं कुछ और पाने की कामना है। प्रेम में पाने या खोने जैसी कोई चीज नहीं होती। जिसे वास्तव में प्रेम हो जाय उसका जीवन बहुत सुखद और सरल हो जाता है। उसे अपने से ही नहीं बल्कि अपने आस-पास में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति से - बूढ़ा, बच्चा, जवान - सबकी भावनाओं की कद्र होने लगती है। वह किसी और का घर उजाड़ने में नहीं बल्कि बसाने में विश्वास करने लगता है। विवाह एक रस्म है और प्रेम एक भाव। प्रेम को किसी भी रस्म में बांध देना उसपर पहरा बिठा देने जैसा है। निःस्वार्थ सच्‍चे प्रेम को सलाम भेजने में पुष्पा जी के साथ मैं भी खड़ी हूँ।

(रचना त्रिपाठी)

8 comments:

  1. कुमकुम त्रिपाठीSeptember 4, 2014 at 10:57 AM

    बिलकुल रचना ,शादी एक रस्म और प्रेम एक भाव है ...अहसास है ...

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  2. किसी का किसी ऐसे, जिसमें हमें कुछ भी विशेष नजर न आए, के प्रति प्रेम हमें आश्चर्यचकित तो कर सकता है किन्तु वह हो ही नहीं सकता ऐसा सोचना मूर्खता है. विवाह में कुछ गणित आ सकता है किन्तु प्रेम में नहीं. हर प्रेम की परिणति विवाह ही हो यह भी आवश्यक नहीं है. हो तो बहुत अच्छा न हो तो भी ठीक.
    एक ऐसे ही समाज की नजरों में विचित्र प्रेम और विवाह की घटना पर लिखती हूँ कुछ दिन में.
    घुघूती बासूती

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  3. एक सलामी मेरी भी.... बहुत बढिया आलेख है रचना जी.

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  4. prem ko sab apane apane anusar paribhashit karte hain lekin prem paise aur umra ke munhtaj nahin hota aur jo isa samajhdari ke sath prem karte hain vo prem to nahin kaha ja sakta hai . meri drishti men to yahi hai . apane bahut sukshm tareeke se varnit kiya hai aur sach hi likha hai.

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  5. "प्रेम में पाने या खोने जैसी कोई चीज नहीं होती।"

    जे बात! जय हो।

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  6. बहुत अच्छा लिखा है और आपके दृष्टिकोण से समग्रतः सहमत हूँ
    अपने प्रेम को पुनः गौरवान्वित किया है जो उसका चिरंतन हकदार है
    दैनिक जागरण में प्रकाशन के लिए भी बधाई !

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  7. प्रेम उजाड़ने में नहीं , बसाने में मदद करता है !
    प्रेम की यही सार्वभौमिक परिभाषा है जो आजकल समझी नहीं जा सकती। मैं समझती हूँ कि पुष्पा मैत्रेयी जी का इशारा धनाढ्य पुरुषों की लोलुपता का फायदा उठाने वाली स्त्रियों की ओर था।

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  8. कल 14/फरवरी /2015 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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