Sunday, August 4, 2013

घुमरी पर‍इया…?

आज याद आया बचपन का एक खेल जिसमें दो दोस्त एक-दूसरे का हाथ पकड़ कर गोल-गोल खूब तेजी से चक्कर लगाते, जिसे हम लोग “घुमरी-परइया” कहते थे। गलती से भी किसी एक का हाथ छूट जाता तो बस दोनों की धड़ाम हो जाती। कितना आनन्दित करता था यह खेल!

ghumri-paraiyaलेकिन जरा सोचिये अगर जान-बूझ कर अपने मित्र के साथ कोई ऐसा मजाक करता है, यानी खेल-खेल में अगर एक खिलाड़ी द्वारा दूसरे का हाथ जान-बूझ कर छोड़ दिया जाय तो गिरने वाले का क्या हश्र होगा।

मैंने बचपन में यह खेल खूब खेला था। जब भी किसी को मजा चखाना होता या किसी से मौज लेनी होती तो बस यही तरीका अपनाया जाता था। कभी खुद भी इसका शिकार हुए तो अगले को दौड़ा लेते। बात मार-पीट तक भी पहुँच जाती।

आज बालकनी से खड़े-खड़े कुछ ऐसा ही नजारा मुझे नीचे सड़क पर दिखा। करीब सात-आठ साल की लड़की और ग्यारह-बारह साल का एक लड़का आपस में घुमरी-परइया खेल रहे थे। दोनों की आपसी सूझ-बूझ बहुत अच्छी लग रही थी। यह खेल खेलकर दोनों ही बहुत आह्लादित हो रहे थे, लेकिन उस लड़की को क्या पता कि आगे क्या होने वाला है। लड़के ने दो-चार बार बहुत सावधानी से उसे गोल-गोल घुमाया, जब वह लड़की पूरी तरह से आश्वस्त हो गयी कि इस खेल में कोई जोखिम नहीं है तो वह इसका पूरी  तरह आनन्द लेने लगी। तभी उस लड़के ने लड़की का हाथ अचानक छोड़ दिया। वह बुरी तरह से जमीन पर गिर पड़ी। लड़का हँसने लगा। उस लड़्की का चेहरा देखने लायक था। ना तो वह उठ पा रही थी और ना ही उस लड़के पर कोई नाराजगी व्यक्त कर पा रही थी। मैं लड़के की हँसी सुनकर खीझ गयी। लड़की की आँखें डबडबा आयी थीं। मैं अपने को बेबस महसूस कर रही थी।

इस खेल में धोखे का परिणाम देखकर मुझे बहुत बुरा लगा। आज सोच रही हूँ कि इस तरह का निष्ठुर मजाक अपने साथी या किसी अन्य से भी नही करना चाहिये। लेकिन तब ऐसी बात मन में क्यों नहीं आती थी? बचपन की अल्हड़ता शायद यही है।

(रचना)

2 comments:

  1. बचपन के दिन याद आ गये पोस्ट पढ़कर!

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  2. इस खेल को लड़कियों को ही खेलते ज्यादा देखा है ! एक याद जो ताजी हो आयी! :-)

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